विदेश मंत्री एस. जयशंकर ने आपातकाल की 50वीं वर्षगांठ पर कांग्रेस और गांधी परिवार पर तीखा हमला बोला। उन्होंने कहा कि आपातकाल इसलिए लगाया गया क्योंकि देश से पहले एक परिवार के हित को रखा गया। उस दौरान न लोकतंत्र बचा, न जनता की आवाज। लोग जेलों में बंद थे, देश डर में जी रहा था और परिवार सत्ता का मजा ले रहा था।
जयशंकर ने कहा कि कुछ लोग आज संविधान की किताब हाथ में लेकर घूमते हैं, लेकिन दिल में उसका सम्मान नहीं करते। उन्होंने तंज कसते हुए कहा कि जो लोग आज लोकतंत्र की दुहाई देते हैं, वो आज तक आपातकाल पर माफी नहीं मांग सके।
विदेश में भी भारत की छवि खराब हुई थी
जयशंकर ने बताया कि जब वह विदेश सेवा में नए थे, तब उनके सीनियर्स ने उन्हें बताया था कि दुनियाभर में भारत की ‘मदर ऑफ डेमोक्रेसी’ वाली छवि को गहरा धक्का लगा था। भारत की बहुत आलोचना हुई और भारतीय राजनयिकों के लिए हालात बेहद कठिन हो गए थे।
2 साल में संविधान से हुआ खिलवाड़
विदेश मंत्री ने कहा कि आपातकाल के दौरान सिर्फ दो साल में 5 बार संविधान में संशोधन हुआ और 48 अध्यादेश लाए गए। 38वें संशोधन में आपातकाल को अदालत में चुनौती देने का अधिकार छीना गया, जबकि 42वें संशोधन में मौलिक अधिकार कमजोर कर दिए गए और न्यायपालिका की शक्ति सीमित की गई।
#WATCH | Delhi: On 50 Years of Emergency, EAM Dr S Jaishankar says, “In those 2 years, 5 constitutional amendments were done and 48 ordinances were passed… 38th amendment said that no one could challenge the declaration of Emergency in court… 42nd amendment said that… pic.twitter.com/4iwHEJj8NZ
— ANI (@ANI) June 27, 2025
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भ्रष्टाचार, महंगाई और सत्ता की लालसा बनी वजह
एस. जयशंकर ने कहा कि 1971 में मिली चुनावी जीत के कुछ साल बाद ही सरकार की लोकप्रियता गिरने लगी थी। भ्रष्टाचार और महंगाई बढ़ गई थी। गुजरात और बिहार में आंदोलन चल रहे थे। ‘युवराज’ के बिजनेस को लेकर सवाल उठ रहे थे। ऐसे में सरकार ने सत्ता बचाने के लिए आपातकाल थोप दिया।
‘किस्सा कुर्सी का’ जिक्र क्यों किया
उन्होंने आगे कहा कि उस दौर में देश का मनोबल तोड़ने की साजिश हुई। जो राजनीति में थे, उन्हें पता था कि कभी भी गिरफ्तार किया जा सकता है। जो जेल गए, उन्हें नहीं पता था कि कब बाहर निकलेंगे। इतना डर और अन्याय शायद ही कभी देखा गया हो। जयशंकर ने कहा कि ‘किस्सा कुर्सी का’ फिल्म के नाम में ही उस वक्त की असलियत छिपी है। जब परिवार को देश से ऊपर रखा जाता है, तब ही आपातकाल जैसे काले अध्याय लिखे जाते हैं।
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आज देश पहले, परिवार नहीं: जयशंकर
उन्होंने कहा कि आज हालात बदल चुके हैं। आज देश का हित सबसे ऊपर रखा जाता है। जब शशि थरूर, सुप्रिया सुले, कनिमोझी, संजय झा, जय पांडा, रविशंकर प्रसाद और श्रीकांत शिंदे जैसे नेता विदेशों में एकजुट होकर भारत का पक्ष रखते हैं, आतंकवाद के खिलाफ आवाज उठाते हैं, तब दुनियाभर में भारत की तारीफ होती है। यही असली लोकतंत्र और देशभक्ति है।
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