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Home»india»Explainer : भारत के सड़कों पर मौत का तांडव! हर घंटे 55 मौतें, आखिर क्यों नहीं रुक पा रहीं दुर्घटनाएं

Explainer : भारत के सड़कों पर मौत का तांडव! हर घंटे 55 मौतें, आखिर क्यों नहीं रुक पा रहीं दुर्घटनाएं

Explainer : भारत के सड़कों पर मौत का तांडव! हर घंटे 55 मौतें, आखिर क्यों नहीं रुक पा रहीं दुर्घटनाएं
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दुनिया में सबसे अधिक आबादी वाले देश भारत में सड़कों पर निकलना क्यों इतना जोखिम भरा काम है. लोग ट्रैफ़िक के नियमों का पालन करें इसके लिए चालान का प्रावधान होता है. लेकिन चालान को लेकर भारत में डर कितना है वो एक सर्वे बता रहा है. Cars24 के एक ताजा सर्वे के मुताबिक भारत में गाड़ियां रखने वाले हर सातवें व्यक्ति पर ट्रैफिक नियमों के उल्लंघन का एक चालान बन रहा है. इतने चालान भारत में पिछले साल 2024 में हुए हैं. इससे पता चलता है कि भारत में सड़कों पर उतरते ही किस तरह नियमों को ताक पर रख दिया जाता है. ये बता रहा है कि क्यों भारत की सड़कों पर चलना दुनिया में सबसे ख़तरनाक माना जाता है.

हर दस में से एक दुपहिया वाहन का चालान
Cars24 के सर्वे के मुताबिक साल 2024 में देश में 8 करोड़ लोगों का ट्रैफ़िक नियमों के उल्लंघन के लिए चालान हुआ है. इनमें 55% चालान चौपहिया वाहनों यानी कार, ट्रक वगैरह के हैं और 45% चालान दुपहिया वाहनों जैसे स्कूटर, मोटरसाइकिल वगैरह के. देश में क़रीब 8 करोड़ लोगों के पास चार पहियों वाले वाहन जैसे कार वगैरह हैं. इन आंकड़ों के हिसाब से सड़क पर उतरी हर दूसरी कार का कम से कम एक बार चालान हुआ है. देश में क़रीब 35 करोड़ दुपहिया वाहन हैं. इस हिसाब से हर दस में से एक दुपहिया वाहन का पिछले साल चालान हुआ है.

अब ये भी जान लीजिए कि इन चालानों की कुल रकम कितनी बनती है. इन आठ करोड़ चालानों को लोग चुका देें तो 12 हज़ार करोड़ रुपए उन्हें देने होेंगे. लेकिन चालान में रकम मिली कितनी. सिर्फ़ एक चौथाई. यानी सिर्फ़ 3 हज़ार करोड़ रुपए के चालान वसूल हो पाये, बाकी 9 हज़ार करोड़ का चालान लोगों ने चुकाया ही नहीं.

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3 लाख रुपए के चालान काटे गए
Cars24 का ये सर्वे भारत में सड़क नियमों के पालन को लेकर कई दिलचस्प आंकड़े पेश कर रहा है. जैसे हरियाणा में एक ट्रक चालक को 2 लाख रुपए से ज़्यादा के चालान सिर्फ़ ओवर स्पीडिंग के लिए किए गए. बेंगलुरु में एक दुपहिया वाहन ने 500 बार नियमों का उल्लंघन किया और उसके 3 लाख रुपए के चालान कटे सड़क नियमों के उल्लंघन पर गुरुग्राम में हर रोज़ 4500 चालान कटते हैं. नोएडा में एक महीने में ही हेलमेट न पहनने पर 3 लाख रुपए के चालान काटे गए.

सड़क के नियमों का उल्लंघन कई तरीके से किया जाता है. सर्वे में ये पता किया गया कि किन ट्रैफ़िक नियमों को सबसे अधिक तोड़ा जाता है. तो सबसे अधिक उल्लंघन होता है गाड़ी की रफ़्तार का. 49% चालान यानी क़रीब आधे चालान तय रफ़्तार से तेज़ गाड़ी चलाने पर कटते हैं. तेज रफ़्तार के कारण सबसे अधिक लोगों की जान जाती है. इसके बाद 19% चालान हेलमेट या सीट बेल्ट न पहनने के कारण कटते हैं. तीसरे स्थान पर 18% चालान रेड लाइट पार करने या गलत साइड पर गाड़ी चलाने पर होते हैं. चौथे स्थान पर 14% चालान ग़लत जगह पर पार्किंग के लिए कटते हैं.

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)इसका मतलब है कि भारत की सड़कों पर अधिकतर लोग अपनी गाड़ियों की रफ़्तार पर लगाम नहीं रखते. यही वजह है कि भारत की सड़कें दुर्घटना के मामले में दुनिया में सबसे ख़तरनाक मानी जाती हैं. भारत की सड़कों पर हर तीन मिनट में एक व्यक्ति दुर्घटना में जान गंवाता है. हर दिन औसतन 474 लोग सड़क दुर्घटनाओं में मारे जाते हैं. ये आंकड़े सड़क परिवहन मंत्री नितिन गडकरी ने दिए हैं. इसीलिए बहुत जरूरी है कि सड़कों पर गाड़ी की रफ़्तार नियमों के भीतर ही रखी जाए.

Cars 24 के सर्वे में एक हज़ार लोगों से सवाल किए गए जिनमें कई दिलचस्प बातें निकलकर सामने आईं. जैसे लोगों से ये पूछा गया कि वो ट्रैफ़िक नियमों को कितना मानते हैं. तो पता चला कि 17.6% चालान से बचने के लिए ट्रैफ़िक पुलिस पर निगाह रखते हैं. यानी पुलिस नहीं दिखती तो रफ़्तार पर लगाम रखना ज़रूरी नहीं समझते. 31.2% का कहना है कि ट्रैफ़िक पुलिस को देखने के बाद ही अपनी गाड़ी को नियम के तहत चलाते हैं. राहत की बात ये है कि 43.9% लोग कहते हैं कि वो नियमों का पालन करते हैं चाहे सड़क पर पुलिस हो या न हो. तो इस आंकड़े को इस तरह से भी देख सकते हैं कि अगर ट्रैफ़िक पुलिस का डर न हो तो क़रीब 49% लोग ट्रैफ़िक के नियम तोड़ने में नहीं झिझकेंगे. यानी वो ट्रैफ़िक के नियमों को गंभीरता से नहीं लेते.

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इसी सवाल को इस तरह भी पूछा गया कि अगर गाड़ी चला रहे लोगों को ट्रैफ़िक पुलिस अ़फ़सर दिख जाए तो वो क्या करेंगे. 12.9% लोगों ने कहा कि वो ट्रैफ़िक पुलिस को देखकर या तो गाड़ी की रफ़्तार कम कर लेंगे या फिर पुलिस वाले से बचने के लिए दूसरा रास्ता ले लेंगे. 34.6% लोगों ने कहा कि ट्रैफ़िक पुलिस को देखते ही वो गाड़ी धीमी कर लेंगे भले ही वो पहले से ही तय रफ़्तार में गाड़ी चला रहे हों. 51.3% लोगों ने कहा कि वो गाड़ी धीमी कर लेंगे और ये सुनिश्चित कर लेंगे कि वो नियमों का पालन कर रहे हैं.

सीसीटीवी की परवाह नहीं
एक सवाल ये भी पूछा गया कि सड़कों पर सीसीटीवी लगे होने का ड्राइविंग पर कैसा असर पड़ता है. 47% लोगों ने कहा कि सीसीटीवी कैमरा हो न हो, वो उसी तरह चलते रहते हैं. 36.8% लोगों ने माना कि वो सीसीटीवी कैमरा देखने पर ही रफ़्तार कम करते हैं. 15.3% ने कहा कि वो स्पीड कैमरा देखकर ही रफ़्तार कम करते हैं और बाकी सीसीटीवी की परवाह नहीं करते. इस सर्वे ने सड़क पर गाड़ी चलाने वाले लोगों के माइंडसेट को भी टटोलने की कोशिश की है. ये पता करने की कोशिश की है कि लोग बार-बार क्यों नियम तोड़ते हैं. तो इसके तीन मनोवैज्ञानिक कारण सामने आए हैं.

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  • पहला ये है कि कई ड्राइवरों मानते हैं कि चालान देना हल्की फुल्की असुविधा है, कोई बड़ी बात नहीं है
  •  60.3% कहते हैं कि हमेशा नियमों का पालन करते हैं जबकि 20.4% मानते हैं कि अगर फाइन दोगुने भी हो जाएं तो भी वो ट्रैफ़िक नियम तोड़ने का जोखिम उठाएंगे
  • 14.2% लोग ट्रैफ़िक तोड़ने पर चालान से बचने का रास्ता निकालने की कोशिश करते हैं.

इसी से मुद्दा निकलता है कि क्या लोग ट्रैफ़िक नियम का उल्लंघन करने पर जब पकड़े जाते हैं तो क्या पुलिस को फाइन दे देते हैं या फिर पुलिस के हाथ गर्म करने यानी चाय-पानी कर देने में उनका विश्वास ज़्यादा होता है. Cars 24 के इस सर्वे के मुताबिक 38.5% लोगों ने ये माना कि उन्होंने ट्रैफ़िक नियम तोड़ने पर एक से ज़्यादा बार घूस दी है. 15.9% लोगों ने माना कि वो अक्सर नियम तोड़ने पर पकड़े जाने पर घूस देकर छूटते रहे हैं. 29.2% लोगों ने कहा कि अगर वो कभी ट्रैफ़िक नियम तोड़ते हैं तो वो चालान दे देते हैं. तो ये सर्वे हमारे देश में सड़कों के हालात को बयां करता है. जो हम देखते और महसूस करते हैं उसे आंकड़ों की शक्ल में बताने की कोशिश करता है. इस साल 1 मार्च से सरकार ने ट्रैफ़िक नियमों के उल्लंघन पर जुर्माना काफ़ी बढ़ा दिया है और सज़ा भी सख़्त हुई है. देखना है कि इसका असर कैसा होगा. वैसे लोगों को ट्रैफ़िक नियमों के प्रति संवेदनशील बनाने की कोशिशें कम नहीं हुई हैं. समय-समय पर कई नायाब तरीके भी अपनाए गए हैं.

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दुर्घटनाएं देश के लिए एक बड़ी त्रासदी से कम नहीं
वैसे Cars24 के सर्वे के आंकड़े हमें चौंकाते इसलिए नहीं हैं, क्योंकि हमने जैसे ये मान ही लिया है कि सड़क पर निकलना है तो जान हाथ में लेकर निकलना है. ऐसा हम इसलिए कह रहे हैं क्योंकि दुनिया में भारत की सड़कें ड्राइविंग के लिए सबसे ज़्यादा ख़तरनाक हैं. साल 2023 में ही देश में 4 लाख 80 हज़ार सड़क दुर्घटनाएं हुईं जिनमें 1 लाख 72 हज़ार लोगों ने जान गंवाई. ये सड़क दुर्घटनाएं देश के लिए एक बड़ी त्रासदी से कम नहीं हैं. जितने लोग दुनिया भर में तमाम युद्धों या आतंकी घटनाओं में नहीं मारे जाते उससे कहीं ज़्यादा लोग सड़क दुर्घटनाओं में दम तोड़ देते हैं और उनमें सबसे ऊपर भारत का स्थान है. इस सिलसिले में ड्राइवर एज्युकेशन से जुड़ी एक अंतरराष्ट्रीय कंपनी Zutobi ने इस साल मार्च महीने में अपनी सालाना रिपोर्ट जारी की.
 

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अमेरिका को 53 देशों में 51वां स्थान मिला
रिपोर्ट में ड्राइविंग के लिए सबसे बेहतर और सबसे ख़तरनाक देशों की लिस्ट तैयार की गई. 53 देशों का सर्वे किया गया और इनमें ड्राइविंग के लिए सबसे ख़तरनाक देश के तौर पर भारत 49वें स्थान पर है. यानी पीछे से पांचवें स्थान पर. ड्राइविंग के लिहाज़ से सबसे ख़तरनाक देश दक्षिण अफ्रीका पाया गया जो लगातार दूसरे साल सबसे ख़तरनाक आंका गया. अमेरिका इस मामले में भारत से भी ख़राब स्थिति में है. अमेरिका को 53 देशों में 51वां स्थान मिला है. यानी वहां की सड़कों पर भी ड्राइविंग सबसे ख़तरनाक मानी गई है. ड्राइविंग के लिहाज़ से सबसे ख़तरनाक पांच देशों में बाकी दो देश हैं थाइलैंड और अर्जेंटीना.

Zutobi.com के मुताबिक ड्राइविंग के लिहाज से सबसे सुरक्षित देश नॉर्वे है जो लगातार चौथे साल पहले पायदान पर है. इसके बाद हंगरी, आइसलैंड, जापाना और एस्टोनिया गाड़ी चलाने के लिहाज़ से पहले पांच सबसे सुरक्षित देशों में शामिल हैं. Zutobi.com ने कई मानकों के आधार पर ये लिस्ट तैयार की है. इनमें सड़कों पर स्पीड लिमिट, ड्राइवरों के लिए ब्लड अल्कोहल कंसंट्रेशन लिमिट, सीट बेल्ट पहनने की दर और सड़कों पर मौत की दरों को शामिल किया गया है. Zutobi.com का सर्वे भी इस बात की ओर इशारा कर रहा है कि भारत में सड़कों पर चलना काफ़ी ख़तरनाक है. केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय के आंकड़े भी इसकी तस्दीक करते हैं.

केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय के मुताबिक भारत में ग़ैर इरादतन चोटों से मौत के लिए सड़क दुर्घटनाएं सबसे ज़्यादा ज़िम्मेदार हैं. क़रीब 43.7% लोग सड़क दुर्घटनाओं में मारे जाते हैं. इसके बाद दूसरा स्थान डूबने से हुई मौतों का आता है जो 7.3 से लेकर 9.1% तक है. इसके बाद जलने से 6.8% लोगों की मौत होती है. जहर से 5.6% की मौत होती है और 4.2 से लेकर 5.5% तक लोग गिरने से जान गंवाते हैं. स्वास्थ्य मंत्रालय ने National Strategy for prevention of unintentional injury नाम से ये रिपोर्ट तैयार की जो पिछले साल सितंबर में चोट से बचाव और सुरक्षा को बढ़ावा देने के मुद्दे पर हुई 15वीं विश्व कॉन्फ्रेंस में पेश की गई.

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75.2% मौत ओवर स्पीडिंग के कारण
रिपोर्ट के मुताबिक सड़कों पर मौत के मामले में 75.2% मौत ओवर स्पीडिंग के कारण होती हैं. 5.8% ग़लत दिशा में गाड़ी चलाने से और 2.5% मौत शराब या ड्रग्स के नशे में गाड़ी चलाने से. नेशनल हाइवे जो पूरे देश में सड़कों के नेटवर्क का महज़ 2.1% है, उसमें सड़क दुर्घटनाएं सबसे ज़्यादा होती हैं. साल 2022 में नेशनल हाइवे पर प्रति 100 किलोमीटर पर 45 जानें सड़क दुर्घटनाओं में गईं. अगर सड़क हादसों में दुनिया के मुक़ाबले भारत की स्थिति देखें तो समझ में आता है कि भारत में हालात कितने गंभीर हैं. वर्ल्ड बैंक के एक अध्ययन के मुताबिक भारत में दुनिया के कुल वाहनों के महज़ 1% वाहन हैं. लेकिन दुनिया की कुल सड़क दुर्घटनाओं में होने वाली मौत की 11% मौत भारत में होती हैं. भारत में हर साल सड़क परिवहन और राजमार्ग मंत्रालय सड़क दुर्घटनाओं पर रिपोर्ट प्रकाशित करता है. लेकिन 2023 की रिपोर्ट अभी प्रकाशित होनी बाकी है. लेकिन इंडियन एक्सप्रेस के मुताबिक सड़क परिवहन मंत्री नितिन गडकरी ने बीते साल 30 नवंबर को लखनऊ में सड़क सुरक्षा पर एक कार्यक्रम में बताया कि 2023 में 4 लाख 80 हज़ार से ज़्यादा सड़क दुर्घटनाएं हुईं, जिनमें 1 लाख 72 हज़ार लोगों की मौत हुईं.

2022 में 4.61 लाख से अधिक सड़क दुर्घटनाएं हुई थीं, जिनमें 1 लाख 68 हज़ार लोगों ने जान गंवाईं. 2022 के मुक़ाबले 2023 में दुर्घटनाओं की तादाद 4.2% बढ़ीं और मौत 2.6% बढ़ीं. 2023 में भारत में हर रोज़ औसतन 1317 सड़क दुर्घटनाएं हुईं. 474 लोग हर रोज़ मारे गए. हर घंटे 55 दुर्घटनाएं और 20 मौतें. यानी हर तीन मिनट पर एक मौत. स्कूल कॉलेजों के आसपास 35 हज़ार दुर्घटनाएं हुईं 10 हज़ार मौत हुईं. सड़क दुर्घटनाओं में जान गंवाने वालों में क़रीब 10 हजार नाबालिग थे.

मरने वालों में 35 हज़ार पैदल चलने वाले थे. मरने वालों में 54 हज़ार लोग ऐसे थे जिन्होंने हेलमेट नहीं पहने थे. मृतकों में 16 हज़ार लोग ऐसे थे जिन्होंने सीट बेल्ट नहीं पहनी थीं. 12 हज़ार मौतें ओवरलोडेड गाड़ियों के कारण हुईं. वैध ड्राइविंग लाइसेंस के बिना गाड़ी चलाने वालों ने 34 हज़ार ऐक्सीडेंट किए. बाकी मौत पुरानी गाड़ियों, पुरानी टैक्नोलॉजी जैसे ब्रेक न लगा पाने के कारण हुईं. सड़क परिवहन मंत्री नितिन गडकरी के मुताबिक 2024 में तो सड़क हादसों में मौतों की तादाद बढ़कर एक लाख 80 हज़ार हो चुकी है.

सड़क दुर्घटनाएं और उनमें मौत के मामले में उत्तरप्रदेश सबसे आगे
भारत में अगर राज्यों की बात करें तो सबसे ज़्यादा सड़क दुर्घटनाएं और उनमें मौत के मामले में उत्तरप्रदेश सबसे आगे है. 2022 में उत्तरप्रदेश में 22,595 मौतें हुईं, इसके बाद तमिलनाडु में 17,884 मौतें हुईं और फिर महाराष्ट्र में 15,224 मौतें. अगर राज्यों में प्रति 100 दुर्घटनाओं मौत का आंकड़ा देखें तो इस मामले में मिज़ोरम सबसे ख़तरनाक स्थिति में है जहां 2022 में प्रति 100 सड़क हादसों पर 85 मौतें हुईं. इसके बाद बिहार में प्रति 100 सड़क हादसों में 82.4 मौतें हुईं. तीसरा स्थान पंजाब का है जहां प्रति 100 सड़क हादसों में 77.5 मौत हुईं. चौथे स्थान पर झारखंड है जहां प्रति 100 सड़क हादसों में 75.3 मौत हुई. 

ये तमाम आंकड़े बता रहे हैं कि भारत में सड़क हादसों को लेकर अब भी बहुत कुछ किए जाने की जरूरत है. कहां तो 2024 तक सड़क हादसों की तादाद आधा करने की बात हो रही थी. कहां ये सड़क हादसे घटने के बजाय बढ़े ही हैं. इसकी सबसे बड़ी वजह है सड़क पर उतरते ही लोगों का मनोविज्ञान. नियमों का पालन न करना. हालांकि, सड़कों पर गड्ढे, इंजीनियरिंग में खामी भी बड़े कारण हैं. लेकिन सबसे बड़ा कारण है ओवरस्पीडिंग. बिना सीट बेल्ट या हेलमेट गाड़ी चलाना. नियमों को खुलेआम तोड़ना. सड़क परिवहन मंत्री नितिन गडकरी के मुताबिक सड़क दुर्घटनाओं के कारण देश की जीडीपी को क़रीब 3% का नुक़सान होता है.

सड़क हादसों का एक और पहलू ये होता है कि इनमें परिवार के कमाने वालों के मारे जाने से पीछे पूरा परिवार बुरी तरह प्रभावित होता है. साल 2022 में सड़क दुर्घटनाओं में मरने वालों में 80% 45 साल से कम उम्र के थे. इसका मतलब ये भी है कि उनमें से अधिकतर अपने परिवार में कमाने वाले थे. अगर एक परिवार में चार लोगों को माने तों इसका मतलब ये है कि 6.8 लाख सीधे-सीधे इससे प्रभावित हुए. इलाज में होने वाला आर्थिक नुकसान, इंश्योरेंस के दावे, गाड़ियों को नुकसान, प्रशासनिक खर्चे जोड़ दिए जाएं तो ये हादसे और ज़्यादा भयानक साबित होते हैं और उससे भी ज़्यादा दुर्घटनाओं से मानसिक सेहत पर पड़ने वाला असर, घर में कमाने वाले की मौत का दुख़, इन सबको किसी भी तरह मापा नहीं जा सकता.




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