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Home»india»Explainer: Balochistan को लोकतांत्रिक गणराज्य घोषित करने की मांग हुई तेज़, पाकिस्तान की परेशानी बढ़ी

Explainer: Balochistan को लोकतांत्रिक गणराज्य घोषित करने की मांग हुई तेज़, पाकिस्तान की परेशानी बढ़ी

Explainer: Balochistan को लोकतांत्रिक गणराज्य घोषित करने की मांग हुई तेज़, पाकिस्तान की परेशानी बढ़ी
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नई दिल्ली:

पहलगाम आतंकी हमलों के बाद भारत की ओर से पाकिस्तान में पहले कई आतंकी ठिकानों पर कार्रवाई और फिर पाकिस्तानी एयरफोर्स के 11 एयरबेस पर अचूक निशानों के बाद से पाकिस्तान की राजधानी इस्लामाबाद और सैन्य मुख्यालय रावलपिंडी सन्नाटे में हैं. उधर वहां के अलग अलग प्रांतों में पाकिस्तान सरकार के खिलाफ आवाज तेज हो गई है. बलूचिस्तान, खैबर पख़्तून ख्वा और गिलगित बाल्टिस्तान में पाकिस्तान की सरकार और सेना के खिलाफ बगा़वती तेवर बढ़ गए हैं. खासतौर पर बलूचिस्तान के मूल बाशिंदों – बलोच लोगों को लगने लगा है कि उनके अपने एक अलग बलूचिस्तान देश की स्थापना दूर नहीं है.

क्या हो रहा है बलूचिस्तान में, किसने रिपब्लिक ऑफ बलूचिस्तान का एलान कर दिया है. आज हम इसी के बारे में आपको बताएंगे. लेकिन उससे पहले ये बता दें कि भारत की सैन्य कार्रवाई से पहले ही पाकिस्तान की तकलीफे काफी बढ़ गई थीं. तब से जब भारत ने सिंधु नदी समझौता स्थगित करने का एलान किया. इस समझौते को स्थगित करने के बाद भारत अब तीन पश्चिमी नदियों सिंधु, झेलम और चिनाब के पानी का अधिकतम इस्तेमाल अपने लिए करने की तैयारी कर रहा है.

जलसंकट का सामना कर रहे पाकिस्तान को इसकी गंभीरता का अंदाजा हो रहा है और इसीलिए आज पाकिस्तान के जल संसाधन मंत्रालय ने भारत से आग्रह किया कि वो सिंधु जल संधि को स्थगित करने के अपने फैसले पर पुनर्विचार करे. पाकिस्तान के जल संसाधन मंत्रालय का कहना है कि समझौता स्थगित करने के भारत के फैसले से पाकिस्तान में पानी का संकट बड़ा हो जाएगा लेकिन सूत्रों के मुताबिक पाकिस्तान के इस पत्र को लेकर भारत सरकार में कोई हमदर्दी नहीं है.

खुद प्रधानमंत्री कई बार कह चुके हैं कि पानी और खून एक साथ नहीं बह सकता. भारत अब सिंधु नदी घाटी से जुड़ी तीन पश्चिमी नदियों सिंधु, झेलम और चिनाब के पानी का अधिकतम इस्तेमाल अपने हक में करने की कोशिश कर रहा है जबकि समझौते के तहत भारत इन नदियों के पानी का सीमित इस्तेमाल ही कर सकता था. जैसे रन ऑफ द रिवर प्रोजेक्ट या पीने के पानी के लिए लेकिन उस पर पानी भंडारण से जुड़े बड़े बांध नहीं बना सकता था. लेकिन अब भारत इन तीनों नदियों पर अपने सभी पुराने बांधों की भंडारण क्षमता बढ़ाने, उनमें सालों से जमा हुए सिल्ट को निकालने और नए बांधों के डिजाइन को अपने दीर्घकालिक हित के अनुरूप बनाने पर काम तेज कर रहा है.

इसके लिए मध्यकालिक और दीर्घकालिक योजनाओं को अंतिम रूप दिया जा रहा है. अभी तक सिंधु नदी समझौते के तहत छह नदियों सिंधु, झेलम, चिनाब, सतलुज, रावी और व्यास का अस्सी फीसदी पानी पाकिस्तान को मिलता था और महज 20 फीसदी भारत को. लेकिन जल्द ही ये स्थिति बदलने जा रही है जो पाकिस्तान के लिए एक नया संकट खड़ा कर देगी. पाकिस्तान का मौसम विभाग मार्च महीने में ही वहां के तीन प्रांतों पंजाब, सिंध और बलूचिस्तान में सूखे की आशंका की चेतावनी दे चुका है.

पाकिस्तान में पानी हमेशा से एक बड़ा मुद्दा रहा है. सिंध प्रांत का तो आरोप रहा है कि हमेशा से पंजाबियों के प्रभुत्व में रही पाकिस्तान सरकार पानी को लेकर बाकी प्रांतों से भेदभाव करती है और उनके हिस्से का पानी पंजाब को दिया जाता रहा है. बलूचिस्तान जैसे प्रांतों को तो तवज्जो दी ही नहीं जाती. यही वजह है कि पाकिस्तान की ताकत के केंद्र इस्लामाबाद और रावलपिंडी के खिलाफ बाकी सभी प्रांतों में असंतोष पनपता रहा है. पानी के अलावा और भी कई मुद्दे इस बेचैनी के बढ़ने की वजह रहे हैं.

भारत की कार्रवाई के बाद से पाकिस्तान के कई इलाकों में बेचैनी बढ़ गई है. बलूचिस्तान, खैबर पख्तून ख्वा और पाकिस्तान के कब्जे वाले कश्मीर के गिलगित बाल्टिस्तान इलाकों में हथियारबंद विद्रोह तेज हो गए हैं. इन सभी इलाकों में सेना की सख्ती के खिलाफ और पाकिस्तान सरकार के सौतेले रवैये के खिलाफ लोग सड़कों पर आते रहे हैं और अब ये सिलसिला और तेज हो गया है. सीधे शब्दों में कहा जाए तो 1971 के बाद से पाकिस्तान अपने अस्तित्व के सबसे भयानक दौर से गुजर रहा है. पाकिस्तान के अस्तित्व को सबसे बड़ी चोट इस समय बलूचिस्तान में लग रही है. बलूचिस्तान की आजादी के लिए लड़ रहे नेताओं ने तो पाकिस्तान से आजादी और रिपब्लिक ऑफ बलूचिस्तान का एलान भी कर दिया है.

सोशल मीडिया पर ये खबर सुर्खियों में है. यही नहीं सोशल मीडिया पर बलूचिस्तान समर्थकों ने दुनिया के नक्शे पर आजाद बलूचिस्तान का मैप भी बना दिया है. बलूचिस्तान के एक नेता मीर यार बलोच ने अपनी सोशल मीडिया पोस्ट X में बलूचिस्तान के पाकिस्तान से आजाद होने का एलान किया. मीर यार बलोच एक जाने माने लेखक और बलोच अधिकारों के लिए लड़ने वाले कार्यकर्ता रहे हैं. अपनी पोस्ट में उन्होंने भारत सरकार से भी अपील की है कि वो नई दिल्ली में एक बलोच दूतावास की इजाजत दें. साथ ही संयुक्त राष्ट्र से मांग की है कि वो बलूचिस्तान लोकतांत्रिक गणराज्य को मान्यता दे और इस सिलसिले में संयुक्त राष्ट्र के सभी सदस्यों की बैठक बुलाए. मुद्रा और पासपोर्ट की प्रिंटिंग के लिए अरबों का फंड जारी करें. उन्होंने संयुक्त राष्ट्र से ये भी अपील की है कि वो बलूचिस्तान में शांति सेना भेजे और पाकिस्तान सरकार से कहा है कि वो बलूचिस्तान से अपनी सेनाओं को वापस बुलाए. उन्होंने ये भी कहा है कि सेना, फ्रंटियर कोर, पुलिस, मिलिट्री इंटेलिजेंस, आईएसआई और नागरिक प्रशासन में शामिल ग़ैर बलोच अधिकारी-कर्मचारी तुरंत बलूचिस्तान छोड़कर चले जाएं. आगे लिखा है कि बलूचिस्तान का नियंत्रण जल्द ही आजाद बलूचिस्तान की नई सरकार को सौंप दिया जाएगा और एक अंतरिम सरकार का जल्द ही एलान होगा लेकिन आपको बता दें कि ये सारी हलचल सोशल मीडिया की है. जमीनी हकीकत थोड़ा अलग है लेकिन इससे ज़्यादा दूर भी नहीं दिख रही.

भारत के ऑपरेशन सिंदूर के बाद मीर यार बलोच की ये अपील और आज़ादी का एलान काफी चर्चा में है. सोशल मीडिया की कई पोस्ट्स में तो भारत और बलोच दोस्ती से जुड़े वीडियो भी जारी किए गए हैं. इनमें कई स्थानीय बलोच लोग भारत-बलूचिस्तान दोस्ती के बैनर लिए खड़े हैं. इनमें लिखा है कि बलूचिस्तान के लोग भारत के साथ हैं. कई पोस्ट्स में कहा गया कि बलूचिस्तान पाकिस्तान के कब्ज़े वाले कश्मीर से पाकिस्तान को बाहर निकालने का समर्थन करता है और अंतरराष्ट्रीय समुदाय पाकिस्तान पर इसके लिए दबाव डाले.

इस बीच मीर यार बलोच ने एक सोशल मीडिया पोस्ट में ये भी दावा किया कि बलोच आज़ादी के लड़ाकों ने डेरा बुगती इलाके में 100 से अधिक गैस फील्ड्स पर हमला कर दिया है. इन सभी दावों की पुष्टि करना मुश्किल है लेकिन अलग देश के अधिकार के लिए लड़ने वाली बलोच लिब्रेशन आर्मी ऐसे हमले करती रही है. बीते रविवार को ही बलोच लिब्रेशन आर्मी ने एक बयान में दावा किया कि उसने पिछले कुछ हफ़्तों में बलूचिस्तान प्रांत में 51 अलग अलग जगहों पर पाकिस्तान की सेना और सरकार के ठिकानों पर 71 हमले किए. बयान के मुताबिक ये हमले केच, पंजगुर, मस्तंग, क्वेटा, तोलंगी, कुलुकी और नुश्की इलाकों में किए गए. बीएलए के लड़ाकों ने न सिर्फ पाकिस्तान की सेना और खुफिया विभागों के ठिकानों को निशाना बनाया बल्कि पुलिस थानों, खनिज ले जाने वाली गाड़ियों और बड़े हाइवेज के आसपास अहम बुनियादी ढांचों को निशाना बनाया. इसके लिए घात लगाकर हमले किए गए, आईईडी धमाके किए गए और स्नाइपर फायर किए गए. बीएलए के मुताबिक उसने ऑपरेशन हीरोफ-2 के तहत ये हमले किए हैं. 

बीएलए के हमलों के तहत ही बीते दिनों बीएलए के स्पेशल टैक्टिकल ऑपरेशन्स स्क्वॉड ने बलूचिस्तान के कच्ची जिले में पाकिस्तान सेना की एक गाड़ी को बम धमाके से उड़ा दिया जिसमें 14 पाक सैनिक मारे गए. बीएलए ने हमले की जिम्मेदारी लेते हुए इसका वीडियो भी जारी किया. इस हमले से कुछ दिन पहले पाकिस्तान के सुरक्षा बलों ने दो अलग-अलग मुठभेड़ों में 10 बलूच लड़ाकों को मार दिया था.

पाकिस्तानी सेना और बलूच लड़ाकों के बीच ऐसी वारदात काफी आम हैं. इसी साल 11 मार्च को बीएलए ने क्वेटा से पेशावर जा रही एक ट्रेन जाफर एक्सप्रेस को हाइजैक कर लिया था. इस ट्रेन में 440 लोग सवार थे. इसके बाद बलूच लिब्रेशन आर्मी के ख़िलाफ़ पाकिस्तान की सेना की कार्रवाई हुई. पाकिस्तानी सेना के मुताबिक 18 पाक सैनिकों, 33 बीएलए के लड़ाकों समेत कुल 64 लोग मारे गए जबकि इसके उलट बीएलए ने दावा किया कि दो सौ से ज़्यादा बंधकों के साथ सेना के 50 लोग मारे गए. तथ्य जो भी हो ये साफ है कि बलूचिस्तान में पाक सेना का दमन पलटकर उसे ही निशाना बना रहा है.

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बलूचिस्तान का ये संकट क्यों है.

  • बलूचिस्तान पाकिस्तान का सबसे बड़ा प्रांत है. जहां बलूच समुदाय रहता है.
  • पाकिस्तान के पूरे क्षेत्रफल का 44 फीसदी अकेले बलूचिस्तान में हैं.
  • लेकिन पाकिस्तान की आबादी का महज छह फीसदी ही इतने बड़े इलाके में बसता है.
  • बलूचिस्तान कुदरती संसाधनों से भरपूर इलाका है और यही इसकी मुसीबत की सबसे बड़ी वजह है.
  • बलूचिस्तान की 1100 किलोमीटर सीमा समुद्र से लगती है जो समुद्री संसाधनों और व्यापार के लिहाज से काफ़ी अहम हैं.
  • ऐसे ही एक समुद्र तट को ग्वादर बंदरगाह के तौर पर पाकिस्तान ने चीन के सहयोग से विकसित किया है.

ऐतिहासिक तौर पर बात की जाए तो बलूच लोग दावा करते हैं कि वो 1200 साल ईसा पूर्व से बलूचिस्तान में रहते हैं जो आज तीन मुख्य भाषाएं बोलते हैं बलूची, ब्राह्वी और सरायकी. आज के दौर में बलूच एक सुन्नी मुस्लिम समुदाय है जो ईरान और पाकिस्तान सीमा के आरपार रहता है. इसके अलावा दक्षिणी अफगानिस्तान में भी बलूच काफ़ी तादाद रहते हैं. पाकिस्तान वाले इलाके को बलूचिस्तान और ईरान वाले इलाके को सीस्तान-बलूचिस्तान कहा जाता है. सीमा के दोनों ओर उन्हें हिंसक दमन का सामना करना पड़ता रहा है. ईरान में बलूच लोगों की मुश्किल ये है कि वो एक शिया बहुल देश में सुन्नी अल्पसंख्यक हैं. पाकिस्तान, ईरान और अफ़ग़ानिस्तान में बलूच लोगों की आबादी करीब 90 लाख है जो बड़े इलाके में बिखरी हुई है. कई कबीलों में बंटे बलूच लोग अपनी राष्ट्रीयता को आज भी शिद्दत से महसूस करते हैं और इसे दबाने में जुटे रहे पाकिस्तान से उनकी नाराजगी पुरानी है.

दरअसल, जब पाकिस्तान आज़ाद हुआ तो कई रियासतों का उसमें विलय हुआ और कई को उसने दबाव से अपने में मिलाना शुरू किया. इसके अलावा कुछ पर जबरन कब्जा भी किया गया. इनही में से एक थी कलात की रियासत. कलात के शासक अहमद यार ख़ान ने पाकिस्तान की आज़ादी से पहले ही 12 अगस्त, 1947 को अपनी रियासत की आज़ादी का एलान कर दिया था लेकिन पाकिस्तान ने अपने गठन के बाद ताक़त का इस्तेमाल कर 27 मार्च, 1948 को क़लात का अपने में जबरन विलय करा लिया और तीन अन्य रियासतों को मिलाकर 1948 में बलूचिस्तान प्रांत का गठन कर दिया. बलूच राष्ट्रवादी तब से ही जबरन हुए इस विलय का विरोध करते रहे हैं और कहते हैं कि बलूच लोग अपनी मर्ज़ी से पाकिस्तान में नहीं मिले. पाकिस्तान के कब्ज़े से नाराज बलूच लोगों ने विद्रोह शुरू कर दिए जिन्हें पाकिस्तान अपनी फौजी ताक़त से दबाता रहा. 1958, 1973, 2005 के विद्रोह ऐसे ही कुछ बड़े विद्रोह रहे. बलूच लोगों का आरोप है कि पाकिस्तान ने जबरन कब्ज़ा करने के अलावा बलूचिस्तान के प्राकृतिक संसाधनों का भारी दोहन किया है और बदले में बलूच लोगों को कुछ नहीं मिल रहा. इस वजह से बलूचिस्तान पाकिस्तान के सबसे गरीब इलाकों में से एक है. इसके अलावा बलूचिस्तान के लोगों को उनके मौलिक अधिकारों से महरूम किए जाने का आरोप पाकिस्तान सरकार पर लगता रहा है.

इन सब कारणों से पाकिस्तान का विरोध करने वालों में कई बलूच संगठन शांतिपूर्ण आंदोलन कर रहे हैं तो कई हथियारबंद आंदोलन कर रहे हैं. ऐसे हथियारबंद संगठन आए दिन पाकिस्तान के सैनिक और नागरिक ठिकानों पर हमला करते रहे हैं. ताज़ा हमला उसी की एक कड़ी है.

बीते पच्चीस साल में इनमें से एक हथियारबंद संगठन सबसे ज़्यादा सुर्ख़ियों में रहा है और पाकिस्तान को सबसे ज़्यादा नुक़सान पहुंचाता रहा है वो है बलूचिस्तान लिब्रेशन आर्मी यानी बीएलए. बीएलए उन हथियारबंद लड़ाकों से निकला है जिन्हें बलूचिस्तान के मरी, बुगती, मेंगल और अन्य बलोच कबीलों और उनके सरदारों का समर्थन हासिल रहा. कई जानकार कहते हैं कि बलोच आंदोलन तत्कालीन सोवियत संघ और उसकी मार्क्सवादी विचारधारा से भी प्रभावित रहा. यहां तक कि बलोच आंदोलन के कई नेताओं को रूस में भी ट्रेनिंग दी गई. आज बीएलए उदार विचारों वाले एक धर्मनिरपेक्ष बलूचिस्तान को बनाने के लिए लड़ रहा है. बीएलए के छह हज़ार से ज़्यादा लड़ाके बलूचिस्तान प्रांत और अफ़ग़ानिस्तान से लगे सीमांत इलाकों में फैले हुए हैं.

वैसे तो बीएलए को कई बलूच नेताओं का समर्थन हासिल है लेकिन बलूच कबीलों के नेता बीएलए के साथ अपने संबंधों को ज़ाहिर नहीं करते ख़ासतौर पर 2006 से जब पाकिस्तान ने बीएलए पर पाबंदी लगा दी. इसके बावजूद बीते कुछ सालों में बीएलए ने बलूचिस्तान के ग्रामीण और कस्बाई इलाकों में अपना अच्छा नेटवर्क बना लिया है. पारंपरिक कबीलाई सरदारों की पकड़ से बाहर बीएलए ने बलूच लोगों पर अपनी एक अलग पकड़ बनाई है. ख़ास बात ये है कि बीएलए पारंपरिक सरदार या कबीलाई व्यवस्था के विरोधी हैं. बीएलए लड़ाकों का दावा है कि वो पाकिस्तान से बलूचिस्तान की आज़ादी और बलूच समाज में अंदरूनी सुधारों के लिए लड़ रहे हैं. गैर पारंपरिक रुख़ के कारण बीएलए युवा और शिक्षित बलूच लोगों के बीच ज़्यादा लोकप्रिय है. जानकारों के मुताबिक बीएलए ने न सिर्फ़ बलूचिस्तान पर पाकिस्तान की पकड़ कमज़ोर की है बल्कि बलोच समाज पर पारंपरिक कबीलाई सरदारों की पकड़ भी कमज़ोर की है.

बीएलए का नेतृत्व किसके हाथ में है ये साफ़ नहीं है. एक रणनीति के तहत बीएलए ने अपने नेतृत्व को अलग अलग इलाकों के स्थानीय कमांडरों के बीच बांटा हुआ है. 2018 में असलम बलोच नाम का बीएलए का एक क्रांतिकारी नेता कंधार में एक आत्मघाती बम धमाके में अपने कुछ साथियों के साथ मारा गया. पाकिस्तान सेना के इस ऑपरेशन में असलम बलोच के मारे जाने के बाद से बीएलए ने अपने नेतृत्व को लेकर रणनीतिक तौर पर खामोशी बनाए रखी है और उसके कई स्थानीय कमांडर मिलकर आंदोलन को आगे बढ़ा रहे हैं. बलूचिस्तान के आंदोलन की अधिकतर बड़ी हस्तियां या तो पाकिस्तान के बाहर रहती हैं या फिर गोपनीय तरीके से बलूचिस्तान में ही कहीं.

बीएलए के अलावा बलूचिस्तान की आज़ादी के लिए लड़ने वाला एक और हथियारबंद संगठन है. बलूचिस्तान लिब्रेशन फ्रंट यानी बीएलएफ़ जिसका गठन 1964 में जुम्मा ख़ान ने किया. बीएलएफ़ एक दौर में बलूचिस्तान के लोगों के बीच काफ़ी लोकप्रिय हुआ करता था लेकिन माना जाता है कि बाद के दौर में बीएलएफ़ के कई लड़ाके बीएलए में शामिल हो गए. इसके अलावा वहां दो और संगठन हैं – फ्री बलूचिस्तान मूवमेंट और बलूच रिपब्लिकन पार्टी जिनकी अगुवाई मरी और बुगती परिवारों के वंशज करते हैं. मरी और बुगती कबीलों पर भी पाकिस्तान की सेना ने भारी अत्याचार किए हैं लेकिन ये संगठन पाकिस्तान के ख़िलाफ़ हथियारबंद विद्रोह नहीं करते.

अपनी आज़ादी के लिए लड़ रहे बलूच लोगों पर पाकिस्तान का दमन हर स्तर पर है. बीते कई साल में हज़ारों बलूच लोग लापता भी हुए हैं. एमनेस्टी इंटरनेशनल की एक रिपोर्ट के मुताबिक 2011 से अब तक 10 हज़ार से ज़्यादा बलोच लोग लापता हो चुके हैं. बलोच लोग मानते हैं कि वो या तो पाकिस्तान के सुरक्षा बलों की क़ैद में हैं या उन्हें मार दिया गया है. उधर बीएलए लगातार पाकिस्तान की सेना और सुरक्षा बलों पर हमले करता रहा है.

पिछले ही साल 26 अगस्त को बीएलए ने आज तक का सबसे बड़ा हमला किया था. दक्षिण पश्चिम बलूचिस्तान में बीएलए ने एक साथ कई हमले किए और दावा किया कि उसकी मजीद ब्रिगेड ने 102 पाकिस्तानी सैनिकों को मार गिराया है. इन हमलों में पाकिस्तानी सेना के कई कैंपों, कई पुलिस थानों, रेलवे लाइनों और हाइवे को निशाना बनाया गया. बीएलए ने इसे ऑपरेशन हीरोफ़ यानी ब्लैक स्टॉर्म बताया.

बीएलए ने ये हमले बलोच राष्ट्रवादी नेता नवाब अकबर बुगती की मौत की 18वीं बरसे पर किए. नवाब अकबर बुगती बलूचिस्तान के लिए ज़्यादा स्वायत्तता की मांग करने वाले नेता थे और बलूचिस्तान में काफ़ी लोकप्रिय थे. पाकिस्तान सरकार का आरोप रहा कि वो देश के ख़िलाफ़ गुरिल्ला युद्ध का नेतृत्व करते थे. पाकिस्तान में मुशर्रफ़ सरकार के दौर में 26 अगस्त, 2006 को क्वेटा से क़रीब 25 किलोमीटर दूर पाकिस्तानी सेना के एक हमले में उनकी हत्या कर दी गई जिससे पूरे बलूचिस्तान में पाकिस्तान के ख़िलाफ़ नाराज़गी नए सिरे से काफ़ी बढ़ गई. बलूचिस्तान की ये नाराज़गी नई ऊंचाई पर पहुंच गई है. देखते हैं आने वाले दिन बलूचिस्तान को किस ओर ले जाते हैं.
 




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